यदि ऊंची प्रशंसा है तो इसका अर्थ नीचे प्रशंसा भी होगी। एक मनुष्य के लिए यह स्वाभाविक बात है कि परमेश्वर से पाई हुई आशीषों के लिए समस्याओं और बंदनों से छुटकारे के लिए विभिन्न काम करने के लिए मिले अनुग्रह के लिए उसके मित्र और प्रियजनों के लिए उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर मिला इत्यादि। इसीलिए वह प्रभु की स्तुति करें। यह परमेश्वर की स्तुति करने का निचला स्तर है।
परमेश्वर की स्तुति करने का ऊंचा स्तर कौन सा है? क्या आप उस समय परमेश्वर की स्तुति कर पाते हैं जब वह आशीषों को अयूब के समान देखे (अयूब 1:21) हमसे ले लेता है? क्या आप प्रेरित पौलुस के समान दूसरों को परमेश्वर ने अच्छे काम करने के लिए जो अनुग्रह दिया उसके लिए परमेश्वर की स्तुति कर पाते हैं? देखें (1 कुरथी 1:14) क्या आप अपने शत्रुओं के लिए जो आपका इंकार करते, सताते और अपमानित करते या गलत समझते हैं, उन्हें परमेश्वर आशीष देने के लिए, परमेश्वर की स्तुति कर पाते हैं? जब ऐसा लगता है कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं देता है, अपनी प्रतिज्ञा को पूरी नहीं करेगा, जैसे इब्राहिम देखें (रोमिया 4:20) क्या आप उस समय परमेश्वर की स्तुति कर पाते हैं जब आप स्वयं को बंदीगृह जैसी परिस्थितियों में पाते हैं? जैसे पौलुस और सिलास (प्रेरितों 16:25) ये ही ऊंची स्तुति है। ये ही वो स्तुति है जो हमारे हाथ में दोधारी तलवार देती है कि हम शत्रु से पलटा ले सकें। (भजन 149:7,9) ये ही वे बम है जिससे शत्रुओं और पलटा लेने वाले को रोक रखता है। (मती 21:16 भजन 8:2) ये ही वह सतुती है जो बंदीगृह की नींवों को हिला सके और बंदीग्रह के द्वारों को खोल दें। (प्रेरितों 16:26)
परमेश्वर के बच्चे क्या आप शैतान की शक्तियों को पराजित होते हुए देखना चाहते हैं? क्या आप अपने जीवन में परमेश्वर के हाथ को देखना चाहते हैं? अपनी स्तुति की नीची अवस्था से उठें और परमेश्वर को ऊंची प्रशंसा अर्पित करें।