वह वृक्ष देखने में मनभाऊ भी था। परमेश्वर के द्वारा सृजित हुए सारे वृक्ष देखने में मनभाऊ थे। परन्तु वह स्त्री ऐसी कल्पना करती थी कि यही एक वृक्ष है जो देखने में मनभाऊ है। मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति यह है कि परमेश्वर के द्वारा दिए गए कोई बातों में वह संतुष्ट नहीं होता और उनकी यह असंतुष्टि अभिलाषा और पाप की ओर ले जाती है।
इस स्त्री ने देखा कि वह वृक्ष बुद्धि देने के लिए चाहने योग्य भी हैं। मानो परमेश्वर ने उसे मूर्ख होकर सृजा है और वह अपनी चतुराई के द्वारा बुद्धिमान बन सकती है। वास्तव में सच्चाई उसके एकदम विपरीत थी। जबकि बाकी सारे वृक्षों से बुद्धिमान बन सकती थी। परन्तु वह बर्जा गया वृक्ष उसे मूर्ख ही बनाता। परमेश्वर ने उसे दिए हुए ज्ञान से वह संतुष्ट नहीं थी और अपने ही तरीके से बुद्धि पाने का प्रयास करके वह पृथ्वी पर सर्वप्रथम और सबसे बड़ी मूर्ख बन गई।
परमेश्वर के बच्चे, "संतोष सहित भक्ति बड़ी कमाई है" (तिमो. 6:6) जब परमेश्वर की हमारे बारे में महान योजना के बारे में हमारे पास एक अच्छा आत्मिक दर्शन हो और हम प्रेरित पौलुस के समान सब बातों में संतुष्ट होना सीख लेंगे, तो हमें आत्मिक बातों के सिवाय और कुछ भी अच्छा, मनभाऊ और चाहने योग्य नहीं लगेगा।