परमेश्वर ने वाटिका में ज्ञान का वृक्ष लगाया और मनुष्यों के आज्ञा दी के उसमें से न खाए। जिससे उसके प्रेमपूर्ण आज्ञापालन की परीक्षा कर सके। मनुष्य दूसरी दृष्टियों से अलग होकर उत्तरदायी प्राणी होकर सृजा गया था। परमेश्वर ने उसे एक स्वैच्छा, जहां अपने लिए चुनने का ज्ञान दिया और चाहा कि वह पूरे मन से और पूरे हृदय से उसकी सेवा करे। परमेश्वर मनुष्यों को कम्प्यूटर के समान बनाकर उसमें आज्ञापालन के निर्देशों को भर सकता था। परन्तु परमेश्वर नहीं चाहता था कि मनुष्य रोबोट बने। वह चाहता था कि सभी पहलुओं में वह स्वतन्त्र होकर पाया जाए। इसीलिए वह सृष्टि का मुकुट कहलाता है।
"जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा" इस मृत्यु को शारीरिक रूप से और आत्मिक रूप से हम ले सकते हैं। जिस दिन मनुष्य ने फल खाया उसी दिन उसका प्राण मर गया, अर्थात उसने परमेश्वर के द्वारा दिए हुए अनन्त जीवन को नष्ट कर दिया। परमेश्वर के वचन के अनुसार जिस दिन उसने पाप किया। उसी दिन वह शारीरिक रूप से भी मर गया। क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में हज़ार वर्ष एक दिन के समान है। (॥ पतरस 3:8) और एक दिन हज़ार वर्ष के समान है। आदम की कुल आयु एक दिन अर्थात एक हज़ार वर्ष भी पूरी नहीं हुई थी।
प्रिय पाठक, हम पूरे मन से परमेश्वर की सेवा करें और प्रेमपूर्ण आज्ञापालन की परीक्षा में विजय बने। यदि हम असफल होंगे तो निश्चय ही हमें मृत्यु का सामना करना पड़ेगा।