जिस प्रकार परमेश्वर ने अपने अच्छे काम को समाप्त करके विश्राम लिया, उसी प्रकार जब हम अपने जीवन के काम को समाप्त कर लेंगे तो हम परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करेंगे। यह विश्राम एक अंतहीन भोर में समाप्त होगा। (सातवें दिन में हम साँझ को नहीं देखते) "हमारे जीवन का अंत भी भोर को ही होना चाहिये, सांझ को नहीं" अर्थात हमारे जीवन का अंत आनन्द में होना चाहिए। "आनन्द भोर को आता है" यह भोर ताजी और सुन्दर होती है। हमें नये जीवन और आनन्द के साथ स्वर्ग में अपने विश्राम में जाना है ना कि दुःख और थकावट से या एलिय्याह के समान "बस है" की पुकार के साथ। जैसे परमेश्वर ने किया वैसे पूर्ण संतुष्टि और सिद्धता के आनन्द के साथ हमें स्वर्ग में विश्राम करने को जाना चाहिए।
जब हम अपने विश्राम में प्रवेश करेंगे तो हमारे काम हमें पूर्ण संतुष्टि और विश्राम देने वाले होने चाहिये। परमेश्वर आप ही हमसे ऐसा कह सके "धन्य हे अच्छे और विश्वास योग्य दास .....अपने स्वामी के आनन्द में सम्भागी हो"